बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि
एक कुत्ता कहीं से भटकते हुए एक शीशमहल में जा घुसा और वहां ढेर सारे शीशों में खुद की ढेर सारी आकृतियाँ देख कर समझा की अब तो खैर नहीं इतने सारे कुत्तों ने घेर लिया है अब तो एक ही चारा है do or die और बस फिर क्या था कुत्ता गुर्राया सारे कुत्ते गुर्राए ,कुत्ता भौंका सारे कुत्ते भौंके और फिर कुत्त...े ने पहले शीशे पर हमला किया , शीशा टूट गया और एक कुत्ता गायब हो गया लेकिन ये कुत्ता इस प्रक्रिया में थोडा घायल हो गया फिर दूसरा शीशा फिर तीसरा फिर चौथा शीशे टूटते रहे और कुत्ता घायल होते होते अंत में स्वर्ग सिधार गया .
वहीँ कुछ समय बाद एक दूसरा कुत्ता आ गया अब इसने भी देखा की सैकड़ों कुत्तों ने घेर लिया है क्या किया जाए जान मुश्किल में फंसी देख इस दुसरे कुत्ते ने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए अपनी पूंछ थोडा हिलाई बाकि सब तो आकृति मात्र ही थे सो उनकी भी पूछ भी हिलने लगी इस पर कुत्ता मस्त हो गया और दोड़ कर एक शीशे में दिख रहे कुत्ते से खेलने लगा फिर दुसरे से फिर तीसरे से और अंत में खेल कूद कर वापस चला गया.
moral of the story is की तुम जैसे सब से पेश आओगे वैसे ही सब तुमसे पेश आएँगे
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